रहियों। अभी दोनों ऐंगनों में कोय मरद नै छै, तोहें रहवौ, तें यहू घोर देखाय जैतै, आरो दादाहौ के | दादा के तबीअत भले खराब रहें, मतर दीदी के ते प्राण निकलते होतै- की करें, की नै करें। हम्में दू-चार दिनों वास्ते मनार सेवी आवै छियै। हमरा पूरा विश्वास छै, भगवान मसूदन हमरों लाज राखी लेतै, दुनियाँ के सब चीज डिर्गे पारें; मनार नै।" सत्ती नें आपना पर एकदम नियंत्रण रखते हुए कहले छेलै।
दरअसल हेनों सब दुख तें वैं जुआनिये से देखतें ऐलो छै, यै लेली घोर विपत्तियों में अपना पर नियंत्रण पावै के हुनर सीखी लेलें छेलै।
“काकी, अभी रात बीते में दू पहर बाकी छै, तोहें इखनी आराम करों, आरो हम्में ऊ ऐंगना में चल्लो जाय छियौं। कुछ सोचिये के घरों में कही देले छेलियै कि काय विशेष काम होलै, तें नहियो लौटें पारौं। काकी, तोहें कोय चिंता नै करों। कसम खाय के कहै छियौं, हम्मे पाँचो रोज, वैद्य काका के दुआरिये जोगते रहवै, पाँचे की दसी रोज- जब ताँय तोहें लौटी नै आयै छों । होना के आबे कोय भगवानों से की कुछु मांगना, जेहनों कि काका के बारे में सुनलें छियै, तबें, सुनै छियै, मसूदन भगवान के दुआरी से कोय निराशो नै लौटलों छै ।" ई कही के झिटकिया, डेढ़िया से बाहर निकली आशु बाबू के ऐंगनों आवी गेलों छेलै।
(२६)
सत्तीं आकाश दिस देखलकै। सरंग गजगज तारा से भरलो होलों छेलै, आरो अन्हारो होने। ऊ आय आपनों मुँहों में कुछु अन्न नै राखले छेलै, होन्हौ के आय बुधवार छेकै, ओकरो वास्तें उपवास के दिन। यही बुधवार के दिन छेलै, नै जानौं कहाँ से हो औघड़ ओकरों दुआरी पर आवी गेलों छेलै। चुट्टा ऊपर उठाय के खनखनैले छेलै, मतर सत्ती के देखिये ऊ लौटी पड़लों छेलै, ई कहतें, “बेटी, तोरों चित्त में एखनी कर्ते उथल-पुथल चली रहलों छौ आरो हेनों हालतों में हम्में तोरों देलों