Page:Satti Bodi (Dr. Amrendra).pdf/94

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हौ दिन नै तें सकीचन - माय आरो नै शबरिये माय गाँव में छेलै, शायत दोनो केकरी नेतो पूरै ले आन गाँव गेलों छेलै - यहीलें सत्ती आपनों घरों में अकेले छेलै। हेनों बात नै छेलै कि ओकरा अकेला में कोय डॉर-भय लागै छेलै। असकरी ते ऊ सालों तांय रहलों है, वहू वक्ती, जखनी नद्दी किनारा में केकरों लहाश जलते रहै, आरो एक्के साथ कर्ते नी कुत्ता - सियार चिकरें-कानें लागे। तखनी एतना जरूरे हुऐ कि जेठ रात भर झुट्ठे के खाँसी सेंबतें रहै कि डरै के कोय बात नै छै, हमें जगलो होलों छियै। मतर आय ऊ भीतरों में रही रही के दहली उठै छै, जखनी जेठों के ऐंगना दिस से कोय बिल्ली रॉ कानै के आवाज आवै छै। जखनी भिरगु मिसिर के यहाँ से संझकी ऊ लौटी रहलों छेलै, तखनियो तें वैं भोकसी, करकी बिल्ली के छपरी पर बैठली कान देखलें छेलै।

भगाय के ख्याल से वैं हट हट करले छेलै आरो बिल्ली के आपनों दिस देखहैं झुकी के झिकटी उठाय के ढोंगी करले छेलै कि बिल्ली ऊ सब देख भागी जाय। तखनी ऊ भागी ते गेलों छेलै, मतर कुछुवे देरी के बाद फेनु घुरियो ऐलों छेलै।

बिल्ली के भगाय के कोशिश में जेठानी के आवाज रही रही के गूंजी उठै छेलै |

“नै, दीदी के हेनों हालातों में असकली छोड़ना ठीक नै, वही ऐंगना में रहना ठीक होते। जब दादा के तबीअत खराब छै, आरो घरों में कोय मरदानाहौ नै छै, एक बेटा टुनुआ, वहू गोड्डा में | सेठों कन नया नया नौकरी मिललो छै, ऐवो करतै केना। प्राती के रहलौ से की। घोर हवांक छै, तें दीदी केना नै डरतें होते। आय बिल्ली के कानवों भी तें अलगे किसिम के छै, ठीक होने, जबॅ विनय बुखार से हफड़ी रहलों छेलै, आरो एक ठो करकी बिल्ली परछत्ती पर रही रही के कानी जाय। ठीक ओकरे बिहानिये तें विनय नै रहलों छेलै। ई सोचहैं, ऊ धड़पड़ाय के उठी गेलै, ई सोची कि वैं रात जेठे के ऐंगना में बितैतै; यैसें आरो कुछ होते-नै-होते, दीदी के थोड़ों टा बॉल तें मिलवे करतै नी।

अभी ऊ आपनों ऐंगना से बाहर निकलवे करतियै, कि झिटकिया, डेढ़िया पार करी ऐंगना में आवी बोललै, “काकी, तोहें हमरा बोलैले छलौ की? ऐतियै तें हम्में विहानिये, मतर सँझकी निर्गुणियां हमरा से कहलकै, तें