यहाँ रहिये के की करतै यै, बड़ों शहर में रहतै, तें बड़ों पढ़यो संभव होय जैतै, आरो कोय-नै-कोय नौकरियो मिलिये जैतै।”
“एकदम ठीक सोचलें छो, बेटा। मतुर हम्में तें कहभौं, अभी रात भर समय छै, माय के केन्हौ मनावै के कोशिश करों। आर्बे हमरों की। देखवे करै छो, की रं देह होलों जाय रहलों छै। बलजीत माय यहाँ रहतै, तें मॉन दू घरों के चिंता में बँटलों रहतै। करै पारवै की, ऊ ते आगू के बात छै। जीं तोहें माय के लै जाय छो, तें एक घरों के चिंता से बचलों रहवै। " आशु बाबूं बड़ी निरीह आँखों से अमरजीत के देखलें छेलै।
“हम्में भोररियां तांय कोशिश करहैं रहवै, बड़का बू। जीं माय नहिंये मानलकै, ते तोरा बेसी फिकिर करै के जरूरत नै छै। खाली भोरे - साँझ दू दाफी पुछारी करी लियौ। माय के खाय-पीये के दिक्कत नै होतै। समांग छेवे करै, सब कुछ करी लेतै। आरो कुछ दुख होते, ते यही महीना भर। फेनु तें सोचन्है नै छै। वहाँ गेला पर हम्में जेन्हें व्यवस्थित होय छियै, कोशिश करवै कि माय के वहीं लै जैय्यै। इखनी नै चाहै छै, ते ओकरों मॉन तोड़ी के नै जैवै।”
“यहू तोहें ठिक्के कहै छों। अच्छा बेटा, आबे जा-आराम करी ला। दू दिन के जगरना बनी जैथौं। बिहानै नीन नै खुलें, ते जगाय लीयों, बेटा | बुढ़ारी के देह छेकै नी। सुतलों बुझी के निकली नै जैय्यों।” घोष बाबूं अमरजीत के माथा पर हाथ राखले छेलै आरो आपनों दुआरी दिस बढ़ी गेलो छेलै।
हुनको आपनों दुआरी दिस जाना छेलै कि सत्ती घरों से बाहर निकली ऐलै। असल में वैं अमर के जेठ से बात करतें सुनी लेले छेलै, मतर की बात होय रहलों छेलै, वही जानै के खयाल से वैं ओकरा कोठरी में बुलाय के आहिस्ता से पूछलकै, “की कही रहलों छेलौ, बड़का बाबू ?"
" कहते की, तोरों शुभ-लाभ के चिंता करी रहलों छेलै, आरो की ? तोरों तें मनों में हमेशे उल्टे बात चक्कर काटते रहे छौ।" अमरजीत के सुर नहियो बदलला के बादो बदललो होलों छेलै।
ई सुनी के सत्ती के मॉन होलै कि वैं कही दै- आखिर मरदाने नी छेकैं, बेटा; माय केरों बात की समझवे, बापे के बात सही लागतौ, आरो बेसी से-बेसी कनियैनी के बात - मतर वैं आपनों जुवान के अमेठी के राखी दे