आठ हुट्ठे अट्ठाइस
नौ हुट्ठे साढ़े एकतीस
दस हुट्ठे पैंतीस
(२२)
“तोहें समझे नै छौ, हमरों गेला से बीहा के रौनके उजड़ें लागतै। भूपेन के माय, तोहें बूझे छौ कैन्हें नी, कि अमर के बीहा पक्की करै में जे-जे तोरों भतीजा सिनी छेल्हौ, ऊ तें बीहा-घोर की, बारातियों में शामिल नै होथौं। हम्में कुछ नहियो बोलवै, तहियो लोगों के यहा लागतै कि बहुत कुछ बोली रहलों छियै | तोहें जैय्ये रहलों छो, जा आरो जरूरे जा। स्वाति के लागतै, नै दादा, तें बोदी तें ऐलै, ओकरों मॉन के बड्डी संतोष मिलतै। अमरजीतो के लागतै, बड़की मामी आवी गेलै, ते आबे कुछ भेद-ऊद नै रहलै। स्वाति के मजबूरी हम्मू समझे छियै, आरो हर स्त्री कें, आपनों पति के देलों वचन के निभावै में मदद करना चाही। आन लोगें जे बूझौ, हमरा कुछ दुख नै छै। हम्में तें स्वातिये के पारिवारिक शांति लें ऊ सब करी रहलों छेलियै| जावें दौ, वैं जे भी करी रहलों छै, तें आपनों हित सोचिये कें।” पंचामृत बाबूं बड़ी शांति के साथ अपनी कनियैनी से कहले छेलै।
आरो हुनी बीहा में ठिक्के नै गेलों छेलै। सौंसे गाँव में ई बातों के लै के कुकुआरों मची गेलों छेलै कि सत्ती बोदी के अपनी बड़की बोदी तें ऐलो छै, मतर बड़का मास्टर मामा नै ऐलै। लोगों साथै आशु बाबुओ यहा अनुमान लगेलें छेले कि इखनी नै, तें बराती जाय के दुओ घंटा पहलै पंचामृत बाबू जरूरे पहुंची जैतै, मतर जबे गाँव के सड़क से गुजरैवाली अखिरलको मोटर गाड़ी भोंपू बजैतें गुजरी गेलों छेलै, ते अनुमान आरो कानाफूसी आरो तेज होय गेलों छेलै।
" हुएँ सकै छे, अमर के बड़का मामा सीधे भागलपुरे में बाराती में मिली जाय। होलों रहें कि हुनका छुट्टी नै मिललों रहें।”