Page:Satti Bodi (Dr. Amrendra).pdf/108

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ई बात खाली अजनसिया के मनों में नै उठी रहलों छेलै, वहाँ पर जौरों होलों मंगलिया, बदरी, सिद्धि आरो साधुओं के मन में उठी रहलों छेलै, फेनु के कहें पारें कि माधो के भी मनों में यही बात नै उठते होतै। मतर सब चुप छेलै।

चुप रहे के कारनो शायत यही बात होते कि जों सवा बिघिया जमीन के हथियैय्ये के बात छै, तें हेनाके सबके बोलाय के बाते कहाँ उठै छै, ऊ ते एकांतिये में गुपचुप गुपचुप होतियै। तब सत्ती बोदी के बारे में कुछुवो कहना मुश्किल; कखनी की करी बैठें।

कि तखनिये तीनो में से एक आदमी ठाढ़ों होलै। ओकरो ठाढ़ों हो हैं सबके ध्यान ओकरे दिस होय गेलै। सब एकदम शांत, सबके मुँह कुछ ऊपर होय के खुली गेलों छेलै।

“ते आपने सिनी सुनियै” ऊ आदमी बोलना शुरू करी देले छेलै, " होना के तें दिवंगत मास्टर लक्ष्मी घोष के विधवा पत्नी स्वाति जी के इच्छा ही काफी छै, यैमें गाँववाला के सहमति आरो असहमति के कोय जरूरते नै छै; तभियो जबें हिनको इच्छा छै, ते आपना सिनी के बीचों में, हिनको है वसीयतनामा पढ़ी के सुनैलों जाय छै। होना के आपने सिनी चाों तें ई वसीयत खुद्दे पढ़ी पारै छों, जे कैथी अक्षर जानै छो; नै ते सबभे के सहुलियत वास्तें हम्में संक्षेप में ई वसीयतनामा के बात सुनाय दै छियौं।

“ई वसीयत में लिखलों छै कि हम्में यानी स्वाति घोष आपनों स्वेच्छा से आपनों हिस्सा के घोर-बारी आपनों जेठानी के नाम करी रहलों छियै, आय से ई घोर आरो बारी के कोनो कोनाही पर हमरों आकि हमरों कोय संतानों के कोय्यो अधिकार नै होतै। चूँकि है सम्पत्ति हमरों मालिकें हमरों नाम करलें छै, यै लेली हमरों इच्छा के विरुद्ध हमरों कीय संतान कभियो कुछ नै बोलें पारें। ई हमरों अकाट्य आरो अंतिम इच्छा छेकै।” ई कहला के बाद ऊ आदमी आपनों हाथ के कागज एक दिसों से दूसरों दिसों के सब आदमी के देखलें छेलै, जे कागज में सत्ती घोष के अंगूठा के दू-दू छाप छेलै।

कोय कुछ नै बोली रहलों छेलै, कुछ बोलै नै पारी रहलो छेलै। ऊ आदमी के बैठहैं सबके नजर एक कोना में बैठली स्वाति पर टिकी गेलै। सबने देखलकै, वहाँ कोय सत्ती बोदी नै, तुलसी चौरा पर सूखी के काँटों