Page:Satti Bodi (Dr. Amrendra).pdf/107

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शिवरानी काकी, जरूरे बीचों में बोली देलें छेलै कि, “जे भी हुए, बड़की बोदी के धीरज आरो हौ सेवा केना भुलैलों जैतै, जिनकों आँख एत्ते एत्ते रात नै सुर्ते पारलै, नै जीहा कोय सुआद जाने पारलकै। कनियाय होय के धरम निभाय देलकै बड़की बोदीं। तब यहू बात तें सोचैवाला छेवे करै कि जॉन दिन सत्ती बोदी के गोड़ मनार छोड़ी के यहाँ पड़लै, वही दिन वैद्य दाँ पत्थ खाय छै, ई कुछ तें मानै जरूरे रक्खै छै।

सूरज दू बाँस से ऊपर चढ़ी ऐलों होते। इखनी सत्ती के ऐंगना में दू-चार बूढ़ी छोड़ी के आरो कोय जनानी नै छै। बाकी जे लोग हिन्ने हुन्ने देहरी, मचिया, खटिया पर बैठलो होलो छै, ओकरा में माधो, मंगलिया, अदरी, सिमरन, कपिल, सिद्धि, झिटकिया आरो साधो तें छेवे करै, ई सब सें अलग तीन हेनों लोग छै, जेकरा ई गाँव में पहिले दाफी देखलों जाय रहलों छै।

हों, अजनसियां जरूरे ई तीनों के भोरियैं गाड़ी से उतरतें देखलें छेलै, तखनी लोटा लेलें ऊ बँसबिट्टी दिस जाय रहलो छेलै। गोड़ तें छेलै बँसबिट्टिये दिस, मतर नजर वहा तीनो लोगों पर कैन्हेंकि ऊ सब गामे दिस आवी रहलों छेलै। वैं यहू देखले छेलै कि जखनी ऊ तीनो आदमी गाड़ी से उतरलों छेलै, तखनी सुग्गी माय वही आमी गाछ के नीचे ठाढ़ी छेलै। सुग्गीमांय तीनो आदमी के देखहैं, ऊ सब के नगीच गेलों छेलै आरो फेनु ऊ तीनो आदमी सुग्गी- माय के पीछू-पीछू बढ़े लागलों छेलै।

तखनी अजनसियां ई बातों के लैके कोय खास माथा-पच्ची नै करलें छेलै, ई सोची के कि एत्तें बड़ों गाँव छै, केकरों कन कुटुम उटुम ऐहै रहै छै, ते माथ लड़ैवों की ?

आरो इखनी जब वहा तीनों आदमी के यहाँ सत्ती बोदी के ऐंगन में देखलकै, तें ओकरों मार्थो ठनकलो छेलै। एक दाफी ते यहा सोचलकै कि हुऍ नै हुऍ, बोदी सवा बिघिया जमीनों के हथियाय लेली ही कोय लब्बों व्यूह रचलों छै। यहू सोचलें छेलै कि बोदी ओकरा सिनी के कोय-न-कोय फेर में

जरूरे फसाय देतै- यै लेली यहाँ से निकल्हैं में भला छै। मतर केकरो हिलते-डुलते नै देखी के वहू पुतला बनले रहलै, मतर सोचतें तें चलले गेलै कि कल ओत्ते भोररिये कैन्हें सत्ती बोदी भटकली-भटकली यशपुरा दिस चल्ली जाय रहलो छै? ई बात इखनी समझें पारी रहलों छियै।