हुऍ कहले छेलै, "बात ते छेलै कि आखिर नैकी बोदी गेलो होतै कहाँ ? हमरा तें लागै छै कि हुनी नै तें समधियारा में होते, नै आपनों लाल दादा है कन होतै, होतै हुनी हिन्नै हुन्हें कहीं।"
“हिन्नैं-हुन्हैं की? बँसबट्टी आकि बारी में?” अरदसिया दायां हाथ के औंगरी सब चमकाय के बोलले छेलै।
“अरे मुरुख, हिन्नँ हुन्ने के मतलब छेकै, या तें बौंसी में होतै या फेनु मनार पर्वते पर हुऍ पारें। याद छौ नी, जबॅ विनय होनों बीमार पड़लों छेलै, तें दिन में एक-दाफी मनारों पर जरूरे चल्लों जाय। मसूदन मन्दिरों के पिण्डा पर माथों टेकै लें।"
“तोरों बात सहियो हुऍ पारें, मतुर तखनी तें कारण छेलै; बेटा के प्राण के सवाल छेलै; इखनी भला कथी लें जैतै ?” अरदसियां पुछलें छेलै।
“वैद्य दा लेली !”
“भला वैद्य दा ले कथी लें जैतै? कॉन मारे, हुनको प्रति सत्ती बोदी के मनों में कोय्यो सुभाव छै!" कपिल ने टोकले छेलै, तें गुलगुलिया बोललै “यहा तें तोहें नै समझें पारले हैं, कपिल। कहलियौ नी, नैकी बोदी के मनों के गति तें देवताहौ नै समझें पारें। एकदम बदरकटुओं रौद। तबें यहू छै कि वैद्य दा लेली हुनको मनों में जे श्रद्धा छै, ऊ फलगु नद्दी के पानी रं बूझें। दिखावै ते नै छै, बस बहै छै भीतरे भीतर। आरो कैन्हें नी बहतै, जखनी - लछमी दा के इन्तकाल होलों छेलै, वैद्य दां की रं दोनों घोर संभाली लेलें छेलै, जरियो टा भेद नै करलें छेलै। है बात जबें हमरै सिनी नै भूले पारलों छियै, ते नैकी बोदी की भूले पारतै। तखनी हमरों सिनी के उमरे की होतै। बेसी से बेसी अमर से साल दू साल बड़ों। “खैर जे भी हुऍ" माधी बातों के संक्षिप्त करते कहले छेलै, "भगमानों से मनावें कि तोरो सत्ती बोदी मनारे पर रहें, आरो हुनी आपने मनों से घुरियो आवै, कैन्हें कि केकरो मनैला आकि बुलैला पर तें हुनी ढेर आवैवाली छै, आरो जों सचमुचे में हुनकों बारे में जानै के किंछा राखे हैं, तें चल झिटकिया लुग| सब नहियो जानते होते, ते कुछ-नै-कुछ जरूरे जानतें होतै। "
“जानना ते चाहवे करियों।” अजनसिया ई कहतें आपनों चूतड़ झाड़ उठलों छेलै, तें सबभे उठी के दखिने दिस सिधयाय गेलों छेलै।